शनिवार, 3 जनवरी 2015

भारतीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति


          प्रिय आत्मन ! 
             भारतीय स्वास्थ्यनीति बनाते समय हमें यह ध्यान रखना होगा कि भारतीय स्वास्थ्यचिंतन ने हितायु को प्रशस्त स्वीकारते हुये चिकित्सा (मेडीकेयर) की अपेक्षा स्वस्थ्यवृत्त (हेल्थ केयर) की महत्ता को प्रतिपादित किया है । भारतीय मनीषियों ने औषधिचिकित्सा को स्वस्थ्यवृत्त की शिथिलता के कारण उत्पन्न समस्यायों के त्वरित समाधान के लिए उपयुक्त होने से द्वितीय क्रम पर रखा । 

भारतीय स्वास्थ्य नीति के आधार तत्व :-  एक ऐसी नीति जो भारतीय परिवेश के अनुरूप हो, भारतीय हितों के लिए उपयुक्त हो, पॉज़िटिव हेल्थ (हेल्थकेयर) मूलक हो न कि निगेटिव हेल्थ (मेडीकेयर) मूलक, स्वास्थ्य विषयक सभी उपक्रम पर्यावरणमित्र हों, तकनीक एवं औषधि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो, बहुराष्ट्रीय औषधिनिर्माणशालाओं पर निर्भरता को न्यून करने वाली हो, भारतीय संसाधनों से विकसित हो और “सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय” की पोषक हो ।

भारतीय स्वास्थ्य नीति के उद्देश्य :- 1- भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद के मूल सिद्धांतों के अनुरूप “स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्” को सर्वोपरि एवं “आतुरस्य विकार प्रशमनम् च” को द्वितीय क्रम पर रखते हुये लोक स्वास्थ्य रक्षण की प्राचीन परम्परा को पुनर्जीवित कर स्वास्थ्य पर व्यय होने वाली धनराशि को उत्तरोत्तर कम से कम करना जिससे इस राशि का सदुपयोग विकास के अन्य कार्यों में किया जा सकना सम्भव हो सके । 2- यूजेनिक्स को व्यावहारिक बनाते हुये जेनेटिक डिसऑर्डर्स पर नियंत्रण एवं उत्कृष्ट संतानोत्पत्ति की आयुर्वेदिक परम्परा की पुनर्स्थापना । 3- जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए देश के सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य एकसमान नीति का निर्माण किया जाना । 4- एक ऐसी नीति का निर्माण जिसमें चिकित्सासुविधायें सर्वसुलभ हों अर्थाभाव के कारण चिकित्सा अनुपलब्धता से किसी की मृत्यु न हो । 5- कृषि एवं फल उत्पादों को घातक रसायनों से मुक्त रखने के लिए शासन एवं जनता के स्तर पर आवश्यक उपाय करना । 6- औषधि कृषि हेतु निर्दुष्ट राष्ट्रीयनीति बनाने के लिए सरकार को तैयार करना । 7- पर्यावरण की सुरक्षा के लिए शासन के अन्य विभागों के समन्वय से सक्रिय योजना तैयार कर  उत्तरदायित्व के साथ क्रियान्वयित करना । 8- भारतीय गो (Bos Indicos न कि Bos Taurus) पालन के लिए प्रोत्साहन की योजना जिससे देश को शुद्ध गो-उत्पाद सुलभ हो सकें । 9- आधुनिक जीवनशैली जन्य व्याधियों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक उपाय करना ।
भारतीय स्वास्थ्यनीति की वैचारिक पृष्ठभूमि में, आपके द्वारा प्रस्तुत रूपरेखा के अनुरूप कुछ बिन्दुओं को रेखांकित करना चाहूँगा ।  

Bharatiya Health Policy – Points for consideration

I. Protecting n Promoting Health is a ‘Responsibility’ - Action Points:
At Individual Level
लोकस्वास्थ्य शिक्षण के माध्यम से स्वस्थवृत्त एवं योगासन के लोकव्यवहार द्वारा । ( व्यक्तिगत दायित्व ) 
At Family Level
+ संयुक्त परिवार का पुनर्प्रचलन, मासानुमासिक गर्भिणी परिचर्या, लेहनसंस्कार, किचन गार्डन प्रोत्साहन, संतुलित आहार एवं प्रशस्त विहार के व्यवहार द्वारा । (व्यक्तिगत एवं शासन का दायित्व )  
At Village Level
+ लोक स्वास्थ्य शिक्षण एवं स्वास्थ्य जागरूकता अभियान के माध्यम से स्वस्थवृत्त, पर्यावरण शुद्धि, संतुलित आहार ...आदि के लोकव्यवहार द्वारा । ( समाज एवं शासन का संयुक्त दायित्व)  
At School level.
योगासन एवं प्राणायाम के व्यवहार के साथ आयुर्वेदोक्त जीवनशैली का सूत्रपात ; शालेय स्वास्थ्य शिक्षण कार्यक्रम द्वारा । ( शिक्षा एवं स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से शासन का दायित्व )
 
II. Participatory; Protective, Preventive & Promotive; Public Healthcare:

जब हम लोकस्वास्थ्य की बात करते हैं तो लोकस्वास्थ्य को क्षति पहुँचाने वाले घटकों पर भी विचार किया जाना आवश्यक समझते है । इस दृष्टि से अनेक कारणों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारण पर्यावरण प्रदूषण है । यह समाज और शासन का संयुक्त दायित्व है किंतु इसके लिए जितने कठोर नियम अपेक्षित हैं कदाचित उनका अभाव है । आज हम वायुप्रदूषण, जलप्रदूषण, भूमिप्रदूषण, खाद्यान्न प्रदूषण एवं विचारप्रदूषण से ग्रस्त हैं । इन सभी प्रकार के प्रदूषणों के लिए उत्तरदायी कारणों के परिहारार्थ शासन स्तर पर कठोर नीति बनाये जाने की आवश्यकता है जिनका अनुपालन समाज के लिए अपरिहार्य हो । पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन के दूरगामी सुपरिणाम निश्चित हैं ।
जब तक हम प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन पर विराम नहीं लगायेंगे, पर्यावरण संरक्षण व संवर्द्धन की बात निरर्थक होगी । अस्तु, लोक स्वास्थ्य में सहभागिता के लिए समाज और शासन को संयुक्त रूप से पर्यावरण शुद्धि हेतु अपनी-अपनी सक्रिय भूमिका सुनिश्चित करनी होगी, जिसका प्रारम्भ शासन की ओर से कठोर नियमों के साथ किया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है ।  

National Preventive and Promotive programs and Budget Allocation for the same.
Sanitation & Hygiene
Safe Drinking Water
Ensuring Balanced Nutrition
Reproductive & Child Health

प्रजनन एवं शिशुस्वास्थ्य हेतु आयुर्वेदोक्त मासानुमासिक गर्भिणी परिचर्या एवं नवजात के लेहन संस्कार को भी सम्मिलित किया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है । 

Prevention of Communicable Disease
आयुर्वेदोक्त आहार-विहार एवं रसायन चिकित्सा की पुनर्स्थापना द्वारा सम्भव     

Prevention of Non Communicable Diseases
आयुर्वेदोक्त जीवनशैली के व्यवहार का लोकव्यापीकरण एक श्रेष्ठ उपाय है ।

III. ‘Healthcare’ & ‘Medicare’ are not synonyms.
Correcting their contextual use [Similar pair = Dharma & Religion]
वास्तव में स्वास्थ्यजागरूकता, लोकस्वास्थ्यशिक्षण एवं स्वास्थ्यपरामर्श जैसे कार्य “हेल्थकेयर” के विषय हैं जिन पर व्यावहारिक कार्य किया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है । इससे हेल्थकेयर और मेडीकेयर के बीच की विभेदक सैद्धांतिक अवधारणा स्पष्ट हो सकेगी । हमें अपने कार्यों के द्वारा जनता के बीच जाकर यह बताना होगा कि रुग्ण हो कर चिकित्सा की शरण में जाने की अपेक्षा रुग्ण न होने के लिये किए जाने वाले उपाय ही प्रशस्त हैं ।

How to avoid their interchangeable use by policy makers.
हेल्थकेयर और मेडीकेयर के मध्य सैद्धांतिक और व्यावहारिक अंतर को नीतिनिर्माताओं के समक्ष स्पष्ट किए जाने का दायित्व चिकित्सा विशेषज्ञों का है । वर्तमान चिकित्सालय मेडीकेयर के केन्द्र हैं, हमें प्रयोग के लिए कुछ इकाइयों में हेल्थकेयर की सुविधायें उपलब्ध करानी होंगी । हमें लोगों को बताना होगा कि आयुर्वेदोक्त जीवनशैली के व्यवहार से स्वास्थ्य संरक्षण और संवर्धन की उपलब्धि सम्भव है । यदि हम यह कर सके तो रुग्ण पड़ने पर होने वाले कष्ट एवं चिकित्सा में होने वाले आर्थिक व्यय को न्यूनतम किया जा सकेगा । जब हम व्यावहारिक रूप में हेल्थकेयर और मेडीकेयर को दो स्वतंत्र इकाइयों में संचालित कर उनके परिणाम आम जनता और नीति निर्माताओं के समक्ष रखेंगे तो निश्चित ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकेगा । यदि हम हेल्थकेयर को मेडीकेयर की अपेक्षा अधिक महत्व दे सके तो निश्चित ही भारतीय स्वास्थ्य नीति में एक महान क्रांति आ सकती है । आदर्श स्थिति यही है कि हमें मेडीकेयर की कम से कम आवश्यकता हो, और यही हमारा लक्ष्य भी होना चाहिए ।  
   
IV. Clinic & Hospital based Curative Medicare – Action Points:
Standards for Clinics, Hospitals & Practice

1-    शासकीय चिकित्सालयों में वितरित की जाने वाली औषधियों की गुणवत्ता पर सदा ही प्रश्न उठते रहे हैं । शासकीय चिकित्सालयों में यंत्रों-उपकरणों-औषधियों के क्रय की प्रक्रिया हास्यास्पद है । न्यूनतम विक्रयमूल्य पर क्रय की जाने वाली सामग्री के स्तर एवं गुणवत्ता को श्रेष्ठ कैसे माना जा सकता है? हमें स्तर एवं गुणवत्ता को सर्वोपरि महत्व देने की परम्परा विकसित करनी होगी । राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे नियम बनाये जाने की आवश्यकता है जिससे सुप्रसिद्ध औषधि निर्माताओं को लेवी के रूप में अपनी श्रेष्ठ औषधियाँ एक निश्चित मूल्य पर शासकीय चिकित्सालयों में विक्रय करने की अनिवार्यता हो । हम अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए जो भी सामग्री क्रय करते हैं उसकी गुणवत्ता के सामने मूल्य को अधिक महत्व नहीं देते । ऐसे में कोटेशन माँग कर न्यूनतम मूल्य पर महत्वपूर्ण सामग्री का क्रय किया जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता । गुणवत्ता से समझौता किये बिना उचित मूल्य पर औषधि एवं यंत्रोपकरण क्रय किए जाने के लिए औषधि लेवी नीति विचारणार्थ प्रस्तावित है ।
2-    चिकित्सालयों/ निजी नर्सिंग होम्स में स्वास्थ्य परामर्श की पृथक इकाई की अनिवार्य स्थापना की जानी चाहिये जहाँ रोगियों को चिकित्सा से पूर्व आवश्यक एवं उपयुक्त परामर्श दिया जाय ।
3-    सामान्यतः विषय विशेष के विशेषज्ञ अपनी क्लीनिक में हर प्रकार के रोगियों की चिकित्सा करते पाये जाते हैं, बहुत कम ऐसा होता है कि वे सम्बन्धित विशेषज्ञ के पास रोगी को रेफ़र करते हों । यह एक अवैज्ञानिक तरलता है जिसके पीछे निश्चित ही सेवाभाव में न्यूनता है । इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाये जाने हेतु कड़े नियम बनाया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है ।
 
Indian Guidelines for Clinical Practice (understanding the context of Indian
research & resources)

Holistic Indian Health Care (bringing allopathy, homeopathy, ayurveda,
naturopathy under one umbrella)

छत्तीसगढ़ में ऐसा प्रयास किया जा रहा  है किंतु पारस्परिक समन्वय एवं स्पष्ट नीति के अभाव में किये गये प्रयास परिणामकारी नहीं हो सके हैं । इस दिशा में आने वाली प्रशासनिक एवं व्यावहारिक बाधाओं को दूर कर इसे परिणाममूलक बनाया जा सकना सम्भव है ।

Accreditation
Linkage with Insurance
Universal Medicare Insurance
Ethics & Values in Medicare

भारतीय चिकित्सा व्यवस्था में गुणात्मक विकास, अनियंत्रित भ्रष्टाचार एवं नैतिक मूल्यों में शिथिलता के दुष्प्रभाव से देशी चिकित्सा की शासकीय-प्रशासकीय व्यवस्था बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है । आयुर्वेद महाविद्यालयों में क्षरित होता शैक्षणिक स्तर हो या शासकीय औषधालयों के लिए गुणवत्ताहीन औषधि क्रय का विषय ; यह नैतिक पतन व्यापक हो चुका है अतः चिकित्सा व्यवस्था के गुणात्मक विकास पर ध्यान दिया जाना प्रस्तावित है जिसमें पंचकर्म को व्यापक रूप में व्यवहृत किया जाना भी सम्मिलित होगा ।

V. Role of Yoga in Healthcare:
Yoga for Positive Health – a wellness initiative

प्राणायाम, ध्यान, त्राटक, शिथिलीकरण ...जैसी  यौगिक प्रक्रियाओं के अभ्यास से हेल्थ को पॉज़िटिव हेल्थ में परिवर्तित किया जा सकता है । चिकित्सालयों में एक पृथक प्रकोष्ठ की स्थापना कर इसे क्रियान्वयित किया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है ।  

Yoga Therapy for Chronic Systemic Illnesses [Adhij Vyadhis]
Yoga in Palliative Care

नैज़ल पॉलिप जैसी व्याधियों के लिए नेती जैसी यौगिक प्रक्रियाओं की तथा तंत्रिकातंत्र की व्याधियों में फ़िज़ियोथेरेपी की क्लीनिकल अप्रोच का चिकित्सालयों में व्यावहारिक उपयोग किया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है ।   

Yoga education

स्वास्थ्य संरक्षण के लिए योगासनों एवं प्राणायाम की वैज्ञानिक उपादेयता सर्वस्वीकार्य हो चुकी है अतः बाधाकारक धार्मिक मान्यताओं को शिथिल करते हुए प्राथमिक शिक्षा के व्यावहारिक पाठ्यक्रम में अनिवार्यरूप से योगासन एवं प्राणायाम का अभ्यास फ़िज़िकल एजूकेशन में समाविष्ट किया जाना प्रस्तावित है । इस तरह आने वाली पीढ़ी अधिक सक्षम और सबल होगी ।  

VI. Role of Ayurveda in Healthcare
Ayurveda Education

लोक स्वास्थ्य शिक्षण :- भारतीय ऋषियों ने जीवनविज्ञान और जीवनकला के ज्ञान को स्वास्थ्य के लिये अनिवार्य मानते हुये जीवन के जिस शास्त्र को लोक कल्याण हेतु अनावृत किया आज वही हमारे समक्ष आयुर्वेद के रूप में विदित हुआ है । जब तक भारतीय स्वास्थ्यचिंतन के सूत्र लोक व्यवहार में प्रचलित रहे तब तक स्वास्थ्य समस्यायें इतनी विकट नहीं रहीं किंतु आज जैसे-जैसे लोक व्यवहार से भारतीय स्वास्थ्य चिंतन के सूत्रों का लोप होता गया वैसे-वैसे स्वास्थ्य समस्यायें गम्भीर होकर विस्तार पाती चली गयीं ।
भारतीय स्वास्थ्य चिंतन को पुनः स्थापित करने के लिए हमें कुछ ऐसे कार्यक्रम तैयार करने होंगे जो उपादेय हों, साथ ही उन्हें स्वास्थ्य जाकरूकता अभियान के अंतर्गत करणीय और व्यवहार्य बनाया जा सके, उदाहरणार्थ-
·         हितसंतति विधानम् , इस नीति के अंतर्गत गर्भाधान एवं पुंसवन जैसे षोडशसंस्कारों को अपने मूल वैज्ञानिक स्वरूप में लोक प्रचलन में लाये जाने का प्रयास किया जाना प्रस्तावित है ।
·         रोगप्रतिरोध क्षमतावर्धन,  वर्तमान में प्रचलित आधुनिक वैक्सीनेशन एक इंड्यूस्ड प्रक्रिया है जो शरीर के लिए विजातीय होने के साथ-साथ पैथोलॉजिकल प्रोसेज से प्रारम्भ होकर प्रतिरक्षण प्रणाली विकसित करती है, जबकि लेहनसंस्कार में प्रयुक्त द्रव्य फ़िजियोलॉजिकल प्रोसेज से प्रारम्भ हो कर प्रतिरक्षण प्रणाली विकसित करते हैं इसलिए लेहन संस्कार अधिक प्राकृतिक और निर्दुष्ट प्रक्रिया है जिसे लोकव्यवहार में पुनः प्रचिलित किए जाने के लिए एक राष्ट्रीयनीति निर्मित किया जाना विचारणार्थ प्रस्तावित है जिससे लेहन संस्कार को एक ‘स्वास्थ्यरक्षण अभियान’ के रूप में व्यापक किया जा सके । कालांतर में लेहनसंस्कार अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्यनीति का एक महत्वपूर्ण भाग बन कर विश्व में भारतीय चिंतन को प्रतिष्ठित कर सकेगा इसमें कोई संशय नहीं है ।
·         हिताहार-विहार नीति, आयुर्वेदोक्त स्वस्थ्यवृत्त के अनुरूप आहार एवं विहार की परम्परा को पुनर्जीवित करने के लिए लोकस्वास्थ्य शिक्षण के माध्यम से सार्थक प्रयास एवं भारतीय पर्वों को, ऋत्वानुकूल आचरण में परिवर्तन की आवश्यकता होने से, उनके मौलिक स्वरूप में पुनर्स्थापित किए जाने की नीति बनाये जाने की आवश्यकता प्रस्तावित है ।
·         पर्यावरण संरक्षण नीति, आधुनिक तकनीकयुक्त सुविधाओं के दुष्प्रभावजन्य परिणामों से जैवविविधता का संकट सर्वविदित है जिससे मुक्त होने के लिए गम्भीर उपायों के साथ-साथ एर्गोनॉमिक्स का शिक्षण अनिवार्य किए जाने की आवश्यकता प्रस्तावित है ।
·         स्वस्थ्यजीवन शैली, इस नीति के अंतर्गत शिक्षण संस्थाओं के माध्यम से लोकस्वास्थ्य शिक्षण के आवश्यक विषयों ( यथा- हमारा आहार, स्वच्छता, आचरण और स्वास्थ्य, गृहवाटिका, स्ट्रेस मैनेजमेण्ट, एक्जामिनेशन फ़ोबिया, किशोरावस्था की समस्यायें, अवर लाइफ़ स्टाइल एण्ड जेनेटिक म्यूटेशन, सिकलिंग एण्ड इट्स मैनेजमेंट इन द लाइट ऑफ़ आयुर्वेद ......आदि) को केन्द्रित कर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया जाना प्रस्तावित है ।
·         स्वस्थपादप - स्वस्थजीवन, इस नीति के अंतर्गत कृषि में व्यवहृत अनावश्यक फ़र्टीलाइज़र्स एवं पेस्टीसाइड्स के अविवेकपूर्ण प्रयोग, ज़ेनेटिकली मोडीफ़ाइड शस्योत्पादन आदि के विरुद्ध जनजाकरूकता लाये जाने के उपायों के साथ-साथ पेस्ट रिपेलेण्ट्स, गोबर खाद, देशी शस्योत्पादन आदि के प्रति अभिरुचि उत्पन्न करने के उपाय किया जाना प्रस्तावित है ।

Ayurveda in Medicare

विगत वर्षों में एण्टीबायटिक्स एवं स्टेरॉयड्स का जिस तरह अविवेकपूर्वक दुरुपयोग, विशेषकर छद्म चिकित्सकों द्वारा किया जाता रहा है उसके कारण एवं माइक्रोब्स के नवीन स्ट्रेंस विकसित होने के कारण एण्टीबायटिक्स का स्थायी विकल्प खोजा जाना आवश्यक हो गया है । आयुर्वेदिक औषधियाँ एक अच्छे विकल्प के रूप में व्यवहृत की जा सकती हैं । किंतु आयुर्वेदिक औषधियों के लिए एक सर्वमान्य मानक विकसित किए जाने की आवश्यकता है जिससे औषधियों को स्तरीय एवं गुणवत्तायुक्त बनाया जा सके । स्वास्थ्य रक्षण की दृष्टि से आयुर्वेद की रसायन एवं वाजीकरण चिकित्सा को, विशेषकर वार्धक्यता के संदर्भ में, विशेषीकृत किया जाकर चिकित्सा जगत को हेल्थ केयर के क्षेत्र में एक नया आयाम दिया जा सकना सम्भव होने से प्रस्तावित है । इस सम्बन्ध में निम्न बिन्दु ध्यातव्य हैं - 
1-  गुणवत्तायुक्त औषधियों का शास्त्रोक्त पद्धति से निर्माण, आधुनिक तकनीक के अविवेकपूर्ण व्यवहार ने औषधि निर्माण की शास्त्रोक्त पद्धति को दूषित किया है जिससे निर्मित गुणवत्ताहीन औषधियों का न केवल विदेशी निर्यात प्रभावित हुआ है अपितु भारतीयों के लिए भी अस्तरीय एवं गुणवत्ताहीन औषधियों के व्यवहार की विवशता हो गयी है । हमें औषधि निर्माण के लिये आधुनिक तकनीक के विवेकपूर्ण उपयोग के साथ-साथ शास्त्रोक्त निर्माण पद्धति को भी पुनर्जीवित करने के लिए एक नीति बनानी होगी ।
2-  औषधीय पादप कृषि, औषधि निर्माणशालाओं को उत्कृष्ट एवं ताज़ी औषधियों का प्रदाय सुनिश्चित करने के लिए औषधीयपादप कृषि की एक राष्ट्रीयनीति बनाया जाना प्रस्तावित है ।
3-  राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रादर्श इकाई की स्थापना, उपरोक्त प्रस्तावित नीतियों का राष्ट्रीय स्तर पर क्रियान्वयन शासन के आर्थिक सहयोग एवं दृढ़ राजनीतिक संकल्प शक्ति के बिना सम्भव नहीं है अतः इसके लिए राष्ट्रीय स्तर की न्यूनतम एक ऐसी प्रादर्श इकाई स्थापित करनी होगी जिसमें भारतीय स्वास्थ्य नीति के सभी पक्षों का आदर्श क्रियान्वयन सम्भव हो सके ।

VII. Role of Traditional Medicinal Systems:
How to Preserve & Promote usage of Traditional Medicinal Systems

विश्व के सभी देशों में स्थानीय पारम्परिक चिकित्सा विधायें प्रचलित हैं जिनका दूरस्थ अंचलों में निवासरत आतुरों की चिकित्सा में योगदान होता है । हमारे अनुभव में आया है कि लोक परम्परागत चिकित्सा विधा में कुछ मौलिकता है तो कुछ विकृति भी । विकृति का अभिप्राय है शास्त्रोक्त पद्धति का विचलित स्वरूप है जिसे परिमार्जित किए जाने की आवश्यकता है । पारम्परिक लोकचिकित्सा के मौलिकपक्षों पर शोध कर उसे चिकित्सा की मान्य प्रणाली में सम्मिलित किया जाना चाहिए । छ.ग. में वनविभाग के द्वारा कुछ वन औषधालय संचालित किए जा रहे हैं जिन्हें पारम्परिक चिकित्सक ही संचालित कर रहे हैं । ऐसे औषधालयों को वैज्ञानिक सर्वेक्षण में लिया जाकर उनकी विश्वसनीयता का परीक्षण किए जाने की आवश्यकता है । इन औषधालयों को स्थानीय स्तर पर अव्यावसायिक औषधि निर्माण के लिए उपकरणीय एवं तकनीकी सहयोग के साथ ही शासन स्तर से मान्यता दिलाने की भी आवश्यकता है जिससे इस विधा को प्रोत्साहित और उन्नत किया जा सके । आयुष विभाग के लिए आवश्यक कच्ची एवं प्रसंसकृत वनौषधियों का प्रदाय भी ऐसी इकाइयों द्वारा किया जाना चाहिये जिससे औषधि निर्माण की लागत भी कम हो सकेगी और शुद्ध एवं ताजी औषधि भी प्राप्त हो सकेगी । छ.ग. में समय-समय पर लोक चिकित्सा के पारम्परिक वैद्यों को वन विभाग द्वारा प्रशिक्षित भी किया जाता है जिसमें आयुर्वेद के चिकित्सक उन्हें सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं । इस कार्य को सुव्यवस्थित एवं नियमित किए जाने की आवश्यकता है ।
परम्परागत वैद्यों को मुख्य धारा में लाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया जाना प्रस्तावित है । सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण के लिये एक माह की अवधि का एक आधार पाठ्यक्रम होगा जिसके पश्चात् उन्हें एक प्रमाणपत्र प्रदान किया जाना प्रस्तावित है ।

Curriculum for traditional healers to bring them in the main stream of health as an active participant of health systems -
1-    चिकित्सा विज्ञान का इतिहास ।
2-    आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांत ।
3-    प्रारम्भिक शरीर रचना ।
4-    प्रारम्भिक शारीर क्रिया ।
5-    प्रकृति एवं विकृति ।
6-    त्रिदोष, धातु, मल, अग्नि एवं पाक ।
7-    रोग के कारण ।
8-    चिकित्सा के उद्देश्य ।
9-    चिकित्सा के सिद्धांत ।
10-  द्रव्य, रस, गुण , वीर्य, विपाक एवं प्रभाव ।
11-  भैषज्य कल्पना ।
12-  आहार- विहार ।
13-  स्वास्थ्य, जीवन का विज्ञान एवं जीने की कला ।
14-  स्वस्थ वृत्त ।
15-  पथ्यापथ्य ।
16-  रोग के प्रकार ।
17-  पर्यावरण ।
18-  योग एवं योगासन ।
19-  वनौषधि संरक्षण एवं संवर्धन ।
20-  शोध की वैदिक प्रक्रिया ।  

VIII. Policies Related to Medical Education:
Work towards holistic health course – AYUSH + Western Medicine. Ayurveda &
Holistic Approach towards Medicare based on Bharatiya Vangmaya.

1-    आयुर्वेद के साथ योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध एवं सोवा रिग्पा का समावेश कर एक समग्र भारतीय स्वास्थ्य विधा का विकास, भारतीय स्वास्थ्य विधा के जिन विभिन्न पक्षों को आज पृथक कर दिया गया है उससे आयुर्वेद का व्यावहारिक स्वरूप दुर्बल हुआ है । भारत की सभी मौलिक स्वास्थ्य विधाओं और परम्पराओं का समावेश कर एक समग्र भारतीयस्वास्थ्य प्रणाली विकसित किया जाना प्रस्तावित है ।  
2-    आधुनिक चिकित्साशिक्षा में आयुर्वेद का शिक्षण, भारत में पश्चिमी और भारतीय चिकित्सा प्रणालियों के अनुयायियों के मध्य पाकिस्तान और भारत जैसी शत्रुता का भाव सर्वत्र दिखायी देता है जो भारतीय लोकस्वास्थ्य हितों के प्रतिकूल है । सभी पद्धतियों के अनुयायियों के मध्य पूर्वाग्रहों को समाप्त करते हुए एक वैज्ञानिक एवं स्वस्थ्य समझ विकसित करने के उद्देश्य से “भारतीय स्वास्थ्य संस्कार” के विचारों का आधान करना आवश्यक है जिसके लिए आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पाठ्यक्रम में आयुर्वेद के सिद्धांतों एवं स्वस्थवृत्त आदि के व्यावहारिक विषयों का समावेश किया जाना प्रस्तावित है । 

Curriculum for M.B.B.S. fourth year students
1-    History of medicine. -1 hr.
2-    Basic principles of Ayurveda –
·         पंचतन्मात्रा, पंचमहाभूत, त्रिदोष, धातु एवं मल - 1 hr.
·         गुण, शरीर, मन, आत्मा, प्रकृति एवं विकृति – 1 hr.
3-    Concept of Agni, Digestion and Metabolism in Ayurveda - 1 hr.
4-    Alimentary of द्रव्य-गुण विज्ञान (रस, गुण, वीर्य, विपाक, प्रभाव आदि) -1 hr.
5-    Suitability and wholesomeness of herbs (सात्म्यता) -1 hr.
6-    स्वस्थवृत्त -  
·         आहार ( including आहार विधि, विरुद्धाहार एवं सम्यक आहार) -1 hr. 
·         विहार ( सम्यक विहार, विरुद्ध विहार, Ergonomics,ऋतु एवं संधिकाल ) 1 hr.
·         पथ्यापथ्य ( health and food habits) – 1 hr. 
·         Health care and medicare, life style, Yoga and Yogaasana. – 1 hr.
7-    Causes of diseases – 1 hr.
8-    Principles of treatment, aims of treatment – 1 hr.
9-    Introduction of पञ्चकर्म – 1 hr.
10- भैषज्य कल्पना ( mode of of preparation of Ayurvedic drugs) – 1 hr.
11- Development of medicines before and after Vedic era – 1 hr.
12- Role of whole and part in treatment – 1 hr.
13- दिक् एवं काल ( space, time, season and transition periods)  – 1 hr.
14- Research methodology in Ayurveda – 1 hr.
15- The dark aspect of analytical research, views of synthesis – 1 hr.

Revise syllabus to become more practical for Indian situation. [start the course with rural postings, include nursing syllabus in first yr, and then go on to anatomy, physiology pathology pharmacology along with medicine surgery etc]

पश्चिमी देशों में स्कूल शिक्षा के पश्चात् उच्चशिक्षा को अकॆडमिक एवं प्रोफ़ेशनल वर्ग में विभाजित कर दिया गया है । शैक्षणिक एवं व्यावहारिक दक्षता के लिए यह एक महत्वपूर्ण व्यवस्था है जिसका अनुकरण किया जाना प्रस्तावित है ।

Involve and use students in implementing national health programs right from first
year.

व्यावहारिक दक्षता के लिए यह एक आवश्यक चरण है किंतु यहाँ यह भी विचारणीय है कि वर्तमान में प्रचलित राष्ट्रीयस्वास्थ्य कार्यक्रमों में आयुष पद्धति का कोई योगदान सुनिश्चित नहीं किया गया है, जबकि रोगप्रतिरोधक्षमता, क्षय, परिवार नियोजन, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, किशोरी स्वास्थ्य, यूजेनिक्स,  क़ीटजन्य व्याधियों, संक्रमणजन्य व्याधियों आदि के लिए आयुष पद्धति की महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित की जानी चाहिये । 
 
Less of theory more of practical /clinical work

....साथ ही साथ सभी पद्धतियों के चिकित्सा छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान हेतु एक निश्चित समयावधि के लिए अपने से भिन्न पद्धति के संस्थान में भेजा जाना समग्र स्वास्थ्य विधा के विकास के लिये उपादेय होगा ।

Make post degree service to the nation compulsory

चिकित्सा में परास्नातक एवं उच्चउपाधि प्राप्त विद्वानों की बौद्धिक क्षमता व उपलब्धताओं का उपयोग प्रशासनिक कार्यों में न लिया जाकर केवल चिकित्सकीय कार्यों में ही लिए जाने का स्पष्ट प्रावधान किया जाना प्रस्तावित है ।

Ethics & Values in Medical Education

गांधी मेडिकल कॉलेज, वर्धा एवं क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लूर के सोशियो-मेडिकल व्यावहारिक पाठ्यक्रम पर विचार किया जाना उपादेय हो सकता है । पाठ्यक्रम में स्पिरिचुअल एवं फ़िलॉसॉफ़िकल अप्रोच के लिए गीता के कुछ अंशों एवं वैशेषिक दर्शन के चयनित अंशों का समावेश किया जाना आज के समय की अनिवार्य आवश्यकता होने से विचारणार्थ प्रस्तावित है । 

IX. Role of WHO in Bharatiya Healthcare Delivery:

विभिन्न देशों की भौगोलिक परिस्थितियों, जीवनशैली, आहार-विहार, लोकपरम्पराओं आदि के कारण स्वास्थ्य समस्यायें एवं आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती हैं, उनमें सार्वभौमिकता नहीं लायी जा सकती । भारतीय उपमहाद्वीप में स्वास्थ्य समस्यायाओं एवं निराकरण के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की महती भूमिका हो सकती है । यथा-  रोगप्रतिरोध क्षमतावर्धन के लिये काश्यप संहितोक्त लेहन संस्कार तथा लवण असंतुलन एवं निर्जलीकरण की स्थिति में ओ.आर.एस. से भी अधिक उपादेय ‘पेया’ के प्रयोग को प्रोत्साहन हेतु आवश्यक उपायों को व्यवहार में लाने के लिए प्रयास किया जाना प्रस्तावित है ।   
राष्ट्रीय आयुष स्वास्थ्य कार्यक्रम - भारत की विभिन्न स्वास्थ्य समस्यायों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद के आधार को लेकर आज तक कोई आयुषस्वास्थ्य कार्यक्रम नहीं बनाया गया जिसके कारण पश्चिमी पद्धति के अनुरूप अनेक दोषपूर्ण कार्यक्रम बनाये और व्यवहृत किये जाते रहे हैं जिन्हें अब विस्थापित करते हुए भारतीय राष्ट्रीयस्वास्थ्य कार्यक्रमों को स्थापित किए जाने की योजना प्रस्तावित है ।

X. Policies related to Medical Research:
Ethics & Values in Clinical Research

भारतीय शास्त्रोक्त अनुसंधान पद्धति के अनुरूप सतत अनुसंधान, यह एक अतिमहत्वपूर्ण विषय है । इस पर गम्भीर चिंतन व मंथन की आवश्यकता है । भारतीयों को यह निश्चित करना होगा कि अनुसंधान के क्षेत्र में वे ऋषिप्रणीत ज्ञानपथ पर चलना चाहते हैं या कोई विचलन चाहते हैं । अनुसंधान की अपनी एक भारतीय पद्धति है जिसका अनुकरण करते हुये लोकहित में सतत अनुसंधान की नीति प्रस्तावित है ।

Support for original research on Indian knowledge.

भारतीय चिकित्सा पद्धतियों यथा- आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी, सोवारिग्पा आदि के संहिता ग्रंथों में चिकित्सा विषयक प्रभूत सामग्री उपलब्ध है जिस पर आयुर्वेदिक शोध पद्धति के अनुरूप शोध किया जाना अपेक्षित है । इससे जहाँ आयुर्वेद का अष्टाङग स्वरूप पुनः व्यावहारिक हो सकेगा वहीं नेत्ररोग, कर्ण-मुख-नासागत रोग, मानसरोग, वार्धक्यताजन्य रोग, क्लैव्यता आदि की प्रभावी चिकित्सा में आधुनिक चिकित्सा पद्धति भी समृद्ध हो सकेगी ।

What research should not happen in this country (Ex: Multi Centric Trials from abroad using our patients as guinea pigs)

नवीन एण्टीबायटिक्स, एण्टीवायरल्स, वैक्सीन्स, जेनेटिक अध्ययनपरक शोध, कॉस्मेटिक्स अध्ययनपरक शोध, फ़र्टिलिटी विषयक एवं अन्य ऐसे सभी शोधों पर भारत में प्रतिबन्ध लगाया जाना प्रस्तावित है जिनका उद्देश्य लोकहित न हो कर व्यापारिक है, जिनके दुष्परिणाम सम्भावित हों, जो प्राकृतिक नियमों के विरुद्ध हों या क्लीनिकल न होकर थ्योरिटिकल हों और जिनके परिणामों का ‘अध्ययन किए जा रहे जीवित प्राणी’ पर दुष्प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो यथा – पैथोफ़िज़ियोलॉज़िकल अध्ययन, रेडियोलॉज़िकल अध्ययन, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियेशन विषयक अध्ययन आदि । इन प्रतिबन्धित शोधों / अनुसन्धानों में ज़ेनेटिक मोडीफ़िकेशन ऑफ़ क्रॉप्स, वेज़ीटेबल्स, फ़्र्यूट्स एण्ड फ़्लॉवर्स भी सम्मिलित किए जाने चाहिये । कोई भी शोध, जो हमारे इकोसिस्टम को क्षति पहुँचाने वाला हो, प्रतिबन्धित होना चाहिये ।
चिकित्सा विषयक शोधों / अनुसन्धानों के समय हमें अपनायी जाने वाली प्रक्रिया का ध्यान रखना होगा । पाश्चात्य शोधप्रक्रिया विश्लेषणमूलक होने के कारण विघटनकारक होती है ...कम से कम शोध प्रक्रिया के अनंतर तो है ही । जबकि भारतीय शोधप्रक्रिया संश्लेषणमूलक होने के कारण उपयोग में लाये गये माध्यमों के स्वरूप को विकृत नहीं करती । प्राचीन भारतीय शोध प्रक्रिया के आदर्श स्वरूप को पुनर्स्थापित करने के लिए भारतीय दर्शन को व्यवहृत करने की आवश्यकता है । हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे शोध कार्यों का लोकजीवन एवं सम्पूर्ण पर्यावरण से व्यावहारिक सम्बन्ध हो ।    
XI. Importance of Traditional Life Style and Value System:

भारतीय पारम्परिक जीवनशैली का परिष्कृत वैज्ञानिक स्वरूप हमें आयुर्वेदिक वांङमय में मिलता है । जैसा कि हम जानते हैं कि आयुर्वेद न केवल एक चिकित्सा शास्त्र है अपितु एक सम्पूर्ण जीवन शास्त्र है जिसका व्यापक अनुशीलन स्वास्थ्यपरक एवं लोककल्याणकारी है । आयुर्वेदिक ग्रंथों में उल्लेखित स्वस्थ्यवृत्त, आहार-विहार, धारणीयाधारणीयवेग आदि पॉज़िटिव-हेल्थ विषयक उपदेशों का व्यावहारिक रूप से प्रचार-प्रसार किया जाना प्रस्तावित है जिसका चिकित्सा शिक्षा के सभी संस्थानों एवं शालेय स्वास्थ्य शिक्षा में अनिवार्य व्यावहारिक समावेश किया जाना चाहिये ।   

Influence of single parent families on child health

आधुनिक जीवनशैली एवं समाजसंरचना में हुये परिवर्तनों के कारण संयुक्त परिवारों की अवधारणा का भारतीय समाज से लोप होते जाना चिंता का विषय है । निश्चित् ही इसका दुष्प्रभाव बच्चों के पालनपोषण पर पड़ा है जिसका स्पष्ट दुष्परिणाम न केवल उनके स्वास्थ्य अपितु उनके व्यक्तित्व और अंत में वर्तमान समाजसंरचना पर भी पड़ा है । विवाह संस्था दुर्बल हुयी है, नैतिक बोध क्षीण हुये हैं और अपराधों में वृद्धि हुई है । एकल परिवारों का एक बड़ा दुष्परिणाम बालस्वास्थ्य, किशोरीस्वास्थ्य एवं किशोरावस्थाजन्य समस्यायों के साथ-साथ वार्धक्यताजन्य समस्यायों के रूप में उभर कर सामने आया है । इन सारी समस्यायों को रोकने का एकमात्र उपाय संयुक्त परिवारों को बढ़ावा देना ही है । संयुक्त परिवार प्रोत्साहन में एक बड़ी भूमिका शासकीय / निजीक्षेत्र में सेवारत् लोगों को अपने परिवारों के साथ रहने की सुविधायें उपलब्ध कराने के उपायों की भी है ।    

Violence, depression and lack of emotional support in families

पारिवारिक एवं सामाजिक हिंसा, मनः अवसाद एवं अन्य मनोविकार, भावनात्मक लगाव में न्यूनता, एकाकीपन ...आदि आधुनिक समस्याओं के विविध कारणों में संयुक्त परिवारों का न होना भी एक प्रमुख कारण है । न केवल व्यक्तिगतस्वास्थ्य अपितु समाजस्वास्थ्य की दृष्टि से भी इन समस्यायों पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है । अतः समग्रस्वास्थ्य के लिए नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा की अनिवार्यता के साथ-साथ संयुक्त परिवारों को प्रोत्साहन दिया जाना स्वास्थ्य नीति का एक प्रमुख अंश होना प्रस्तावित है।

Violence in Schools

आजकल शालेय हिंसा के कई स्तर एवं विविध स्वरूप देखने-सुनने में आ रहे हैं । मानसिक-शारीरिक प्रताड़ना के साथ-साथ यौनहिंसा भी प्रमुखता से उभर कर आयी है । शालाओं में शिक्षकों द्वारा प्रताड़ना, विद्यार्थियों में आपसी हिंसा के साथ-साथ शालेय परिवार के अतिरिक्त बाह्य असामाजिक तत्वों द्वारा शाला आने-जाने के अनंतर हिंसा की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है । यद्यपि यह विषय शिक्षा विभाग की नीतियों-रीतियों से सम्बन्धित अधिक है तथापि विद्यार्थियों में बुल्लींग की प्रवृत्ति को रोकने के लिए मनोचिकित्सा परामर्श की व्यवस्था उपादेय होगी । शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता एवं अध्यापन दक्षता में न्यूनता तथा उनमें विद्यार्थियों के प्रति गुरुकुल जैसे प्रेम और समर्पणभाव के अभाव के कारण शालाओं का वातावरण दूषित हुआ है जिसके परिणामस्वरूप न केवल मनोदैहिक प्रताड़ना अपितु परीक्षा में पक्षपातपूर्ण अवमूल्यन की वैचारिक हिंसा से विद्यार्थी प्रभावित होते हैं । वस्तुतः हमारी वर्तमान शिक्षा नीति देश की स्वाधीनता के बाद भी दोषमुक्त नहीं हो सकी है । इसमें आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है ।    

XII. Spiritual Health & its Allied Sciences:

आर्ष वाङमय में स्वास्थ्य की समग्रता पर चिंतन करते हुये शरीररचनात्मक एवं शरीरक्रियात्मक संतुलन के साथ-साथ आत्मा, इन्द्रिय एवं मन की प्रसन्नता ( अवैकारिकता / निर्मलता ) का भी समावेश करते हुये उपदेष्टित यह सुपथप्रदर्शक सूत्र अवलोकनीय है - 

सम दोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियः । 
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनः स्वस्थ्यत्यभिधीयते ॥
     
इस सूत्र को ग्रंथ से बाहर निकालकर व्यावहारिक स्तर पर लाये जाने के लिए आध्यात्मिक व नैतिक शिक्षा का समावेश शालेय शिक्षा से प्रारम्भ कर स्नातक स्तर तक लाया जाना आवश्यक है । इसके लिए भारतीय वाङमय में से प्रासंगिक अंशों का चयन कर एकीकृत आध्यात्मिक शिक्षा का पाठ्यक्रम तैयार किया जाना प्रस्तावित है । 

XIII. Quantifying Health needs of Society:
Arogya shiksha by Ayurvedic councilors for every individual: a) how many teachers for that

सामान्य क्षेत्रों में प्रति 5 हजार की जनसंख्या पर 1 एवं अनुसूचित क्षेत्रों में प्रति 2 हजार की जनसंख्या पर 1 शिक्षक प्रस्तावित ।

b) how many Arogya school for that

पृथक से आरोग्यशाला की अपेक्षा कदाचित यह अधिक व्यावहारिक होगा –
1.    आयुर्वेद के अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों को शिक्षण हेतु समीपस्थ क्षेत्रों में भेजा जाय ।
2.    आयुर्वेद चिकित्साधिकारियों द्वारा उनकी पदस्थापना के क्षेत्रों में शिक्षण किया जाय ।
3.    परम्परागत वैद्यों को प्रशिक्षित कर उनकी सेवायें ली जायें ।
4.    जहाँ ये सुविधायें उपलब्ध नहीं हैं वहाँ लोकस्वास्थ्य परामर्शदाता के पद ( प्रति बीस हजार की जनसंख्या पर एक पद) सृजित कर उनकी सेवायें ली जायें ।
5.    दुर्गम क्षेत्रों के लिए एक चलित इकाई भी सृजित की जा सकती है । 

Basic medical care for ill: a) how many ills are expected, b) how many GPs required,
c) how many colleges, d) how many Health Social & Communication workers, e)
source of fund social organizations/govt/investors and profit makers
Advanced medical care: a) how many pts expected, b) how many subspecialists
required, c) how many colleges, d) funds - social organizations/govt/ investors and
profit makers (insurance), e) teaching opportunity, availability of teachers.

XIV. Information Technology & Health:

 अंतर्जाल पर कुछ ऐसी साइट्स विकसित की जानी प्रस्तावित हैं जिनमें स्वस्थवृत्त, सामान्य रोगों के लिए घरेलू चिकित्सा, जीर्ण रोगों के लिए चिकित्सा परामर्श एवं गम्भीर रोगों के लिए विशेषज्ञ परामर्श आदि विषयों पर “समग्र चिकित्सा पद्धति” के प्रकाश में उपयुक्त सूचनाओं का समावेश किया गया हो ।