पिछले २५ अक्टूबर को चंडीगढ़ में भारतीय स्वास्थ्य चिंतन के राष्ट्रीय संयोजक डॉक्टर अशोक पुरुषोत्तम काले के सद्प्रयासों से एक कार्यशाला संपन्न हुई . सुखद बात यह रही कि इसमें आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान के निष्णात विद्वानों ने न केवल भाग लिया बल्कि आयुर्वेद के उपेक्षित पक्षों पर व्यावहारिक प्रकाश भी डाला. दिल्ली स्थित पुष्पावती सिंघानिया शोध संस्थान के प्रशासनिक निदेशक डॉक्टर दीपक शुक्ल ने अध्यात्मिक स्वास्थ्य पर प्रकाश डालते हुए आध्यात्मिक ऊर्जा को अमूर्त, सर्व-श्रेष्ठ एवं चिकित्सा में उपचार का एक आवश्यक साधन बताते हुए कहा कि आध्यात्मिक ऊर्जा से मस्तिष्क का एक भाग - "प्री सेंटर गाइरस" प्रकाशित होता है.
डॉक्टर आर. एन . महरोत्रा नें देह व् मानस प्रकृति की निदानोपचार में व्यावहारिक उपादेयता को महत्व देते हुए चिकित्सा में प्रकृति निर्धारण को अपनाए जाने पर बल दिया.
आयुर्वेद विश्वविद्यालय जामनगर से आये वैद्य हितेश जानी नें गाय व् ग्राम्याधारित स्वास्थ्य नीति बनाए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए गाय को सुख-समृधि का क्रांतिकारी स्रोत निरूपित किया. उन्होंने बताया कि बुद्धिवर्धक तत्व सेरिब्रोसाइड एवं कैंसर विरोधी तत्व सी. एल. ए. केवल भारतीय देशी गायों के दूध में ही पाया जाता है . गाय के दूध में पाया जाने वाला पीलापन कैरोटिन की उपस्थिति के कारण होता है जोकि गाय में पायी जाने वाली सूर्य-केतु नाडी के प्रभाव से उत्पन्न होता है. भारतीय देशी गायों के विशिष्ट महत्व के कारण ही ब्राजील एवं न्यूजीलैंड में भारतीय देशी सांडों से गायों की नयी प्रजातियाँ उत्पन्न की जा रहीं हैं एवं उनसे क्रांतिकारी परिवर्तन लाये जा रहे हैं. जामनगर में किये गए प्रयोगों से पता चला है कि राग ललित, विभाष, भैरवी एवं आसावरी से गाय में उत्पन्न होने वाले प्रभावों से उनके दूध में चमत्कारी गुण उत्पन्न होते हैं . गुजरात में किये गए इन प्रयोगों से बृज की गायों और कृष्ण की बांसुरी के सुरों के बीच संबंधों की पुष्टि होती है .
वस्तुतः गाय और गाँव के अर्थ-शास्त्र को पुनः स्थापित किये बिना भारत को सुखी व् समृद्धिशाली बनाया जा सकना संभव नहीं है.
The AYURVEDA is a science of life ...deals with maintenance and preservation of the health....by propounding scientific life style and eradication of the diseases ....with purification of the body and the mind, followed by medication discriminately.
शनिवार, 30 अक्टूबर 2010
सोमवार, 18 अक्टूबर 2010
अभिवादन और संक्रमण
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की ननिहाल में अभिवादन के पाश्चात्य तरीके से सावधान रहने की आवश्यकता है / जी हाँ ! मैं छत्तीसगढ़ की बात कर रहा हूँ / यहाँ अस्पताल आने वाले रोगियों में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो डॉक्टर से हाथ मिलाना आवश्यक समझते हैं फिर भले ही वे नोसोकोमिअल इन्फेक्शन के शिकार क्यों न हो जाएँ/
लगता है ''हाथ धो दिवस'' में लोगों को यह भी बताने की ज़रुरत है कि न केवल भोजन से पूर्व हाथ धोने की आवश्यकता है अपितु हाथ को संक्रमित होने से बचाने की आवश्यकता भी है / ....और इसके लिए उन्हें केवल हाथ जोड़कर भारतीय पद्यति से नमस्कार करने की आदत डालनी होगी/
अस्पताल परिसर में क्रास-इन्फेक्शन होना एक आम बात है/ केवल अमेरिका में क्रास इन्फेक्शन के कारण प्रति वर्ष हज़ारों लोगों की मृत्यु हो जाती है जबकि इसे रोकना ज़रा भी मुश्किल नहीं है/ बस उन्हें इतना ही बताने की आवश्यकता है कि अभिवादन का सबसे बेहतर तरीका हाथ जोड़कर नमस्कार करना ही है/
मुझे याद है एक बार मैं अपने एक मित्र से मिलने अस्पताल पहुंचा वे ऑपरेशन करने केलिए तैयार हो चुके थे , मेरा नाम सुनते ही ओ.टी से बाहर आये , आते ही ग्लब्स पहने ही बड़ी गर्मजोशी से उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया/ मुझे संकोच हुआ पर उनके बढ़े हुए हाथ की अवहेलना नहीं कर सका / जब वे वापस अन्दर जाने लगे तो उनके पीछे-पीछे आयी नर्स नें उन्हें फिर से प्रेपरेशन रूम की ओर इशारा किया , वे झेंप गए. और सॉरी कहकर ग्लब्स बदलने चले गए/ नर्स मुस्कराई -" मुझे पता था आप भूल जायेंगे इसीलिये मैं आपके पीछे-पीछे आ गयी"
यह अक्षम्य गलती थी, किसी सर्जन से इस गलती की ज़रा भी आशा नहीं की जा सकती/ ऐसा नहीं कि वे IATREOGENIC कारणों की गंभीरता को नहीं जानते / दर-असल हमारे समाज का ढांचा ही कुछ इस तरह का बना हुआ है कि हम किताबों के आदर्श से बहुत ज़ल्द बाहर आ जाते हैं और एक आम आदमी जैसे बन कर व्यवहार करने लगते हैं /
खैर, मैं आपको यह बता देना चाहता हूँ कि हर व्यक्ति एक वाहक के रूप में व्यवहार करते हुए रोगजनक माइक्रो ओर्गेनिज्म को एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुंचाता है , कोई आवश्यक नहीं कि वाहक स्वयं रोगी ही हो , वह स्वस्थ्य भी हो सकता है पर अपने संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों को रोगी बना सकता है / अब क्योंकि अस्पताल में विभिन्न रोगों के रोगी आते हैं इसलिए स्वाभाविकतः वहां विभिन्न रोग-जनक माइक्रोब्स की भरमार होगी / डॉक्टर स्वयं भी प्रतिदिन न जाने कितने रोगियों के सीधे संपर्क में आते हैं और एक सशक्त वाहक बन जाते हैं / नोसोकोमिअल इन्फेक्शन से बचने के लिए इतना एहतियात ज़रूरी है / यदि हम इतना कर लेते हैं तो अनेकों रोगों से यूँ ही बच सकते हैं/
................और इस मुहिम में सभी डॉक्टर्स से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे हाथ मिला कर अभिवादन करने की इस अवैज्ञानिक एवं रोग फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली विदेशी एवं सर्वथा अनुपयुक्त परम्परा को हतोत्साहित करने में अपनी सक्रिय भूमिका को निभाने के क्रम में सबसे पहले स्वयं हाथ जोड़ कर नमस्कार करना प्रारम्भ करने का मेरा निवेदन स्वीकार करें /
..........सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामयाः /
लगता है ''हाथ धो दिवस'' में लोगों को यह भी बताने की ज़रुरत है कि न केवल भोजन से पूर्व हाथ धोने की आवश्यकता है अपितु हाथ को संक्रमित होने से बचाने की आवश्यकता भी है / ....और इसके लिए उन्हें केवल हाथ जोड़कर भारतीय पद्यति से नमस्कार करने की आदत डालनी होगी/
अस्पताल परिसर में क्रास-इन्फेक्शन होना एक आम बात है/ केवल अमेरिका में क्रास इन्फेक्शन के कारण प्रति वर्ष हज़ारों लोगों की मृत्यु हो जाती है जबकि इसे रोकना ज़रा भी मुश्किल नहीं है/ बस उन्हें इतना ही बताने की आवश्यकता है कि अभिवादन का सबसे बेहतर तरीका हाथ जोड़कर नमस्कार करना ही है/
मुझे याद है एक बार मैं अपने एक मित्र से मिलने अस्पताल पहुंचा वे ऑपरेशन करने केलिए तैयार हो चुके थे , मेरा नाम सुनते ही ओ.टी से बाहर आये , आते ही ग्लब्स पहने ही बड़ी गर्मजोशी से उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया/ मुझे संकोच हुआ पर उनके बढ़े हुए हाथ की अवहेलना नहीं कर सका / जब वे वापस अन्दर जाने लगे तो उनके पीछे-पीछे आयी नर्स नें उन्हें फिर से प्रेपरेशन रूम की ओर इशारा किया , वे झेंप गए. और सॉरी कहकर ग्लब्स बदलने चले गए/ नर्स मुस्कराई -" मुझे पता था आप भूल जायेंगे इसीलिये मैं आपके पीछे-पीछे आ गयी"
यह अक्षम्य गलती थी, किसी सर्जन से इस गलती की ज़रा भी आशा नहीं की जा सकती/ ऐसा नहीं कि वे IATREOGENIC कारणों की गंभीरता को नहीं जानते / दर-असल हमारे समाज का ढांचा ही कुछ इस तरह का बना हुआ है कि हम किताबों के आदर्श से बहुत ज़ल्द बाहर आ जाते हैं और एक आम आदमी जैसे बन कर व्यवहार करने लगते हैं /
खैर, मैं आपको यह बता देना चाहता हूँ कि हर व्यक्ति एक वाहक के रूप में व्यवहार करते हुए रोगजनक माइक्रो ओर्गेनिज्म को एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुंचाता है , कोई आवश्यक नहीं कि वाहक स्वयं रोगी ही हो , वह स्वस्थ्य भी हो सकता है पर अपने संपर्क में आने वाले दूसरे लोगों को रोगी बना सकता है / अब क्योंकि अस्पताल में विभिन्न रोगों के रोगी आते हैं इसलिए स्वाभाविकतः वहां विभिन्न रोग-जनक माइक्रोब्स की भरमार होगी / डॉक्टर स्वयं भी प्रतिदिन न जाने कितने रोगियों के सीधे संपर्क में आते हैं और एक सशक्त वाहक बन जाते हैं / नोसोकोमिअल इन्फेक्शन से बचने के लिए इतना एहतियात ज़रूरी है / यदि हम इतना कर लेते हैं तो अनेकों रोगों से यूँ ही बच सकते हैं/
................और इस मुहिम में सभी डॉक्टर्स से मेरा विनम्र अनुरोध है कि वे हाथ मिला कर अभिवादन करने की इस अवैज्ञानिक एवं रोग फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली विदेशी एवं सर्वथा अनुपयुक्त परम्परा को हतोत्साहित करने में अपनी सक्रिय भूमिका को निभाने के क्रम में सबसे पहले स्वयं हाथ जोड़ कर नमस्कार करना प्रारम्भ करने का मेरा निवेदन स्वीकार करें /
..........सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामयाः /
रविवार, 3 अक्टूबर 2010
आनंद की खोज में .....
जीवन अद्भुत है .......प्रकृति को ईश्वर का एक अनुपम उपहार. यह विज्ञान भी है और कला भी. आप जीवन को कलात्मक विज्ञान भी कह सकते हैं.दुर्भाग्य से हमने जीवन के विज्ञान को जीवन की कला से पृथक कर दिया है, परिणाम स्वरूप आज हम न जाने कितनी व्याधियों से ग्रस्त होते जा रहे हैं.........शारीरिक-मानसिक व्याधियां. सभी के विशेषज्ञ अपनी विशेषज्ञता के साथ लोगों को स्वास्थ्य लाभ देने का प्रयास कर रहे हैं.पर रोग हैं कि पीछा छोड़ने को तैयार ही नहीं.......यह विचारणीय है. ऐसा क्यों हो रहा है ?
कारण स्पष्ट है, हमने जीवन की सम्पूर्णता को खंडित कर दिया है. जीवन से विज्ञान को खंड-खंड कर दिया.....और फिर उसकी कलात्मकता को नष्ट कर दिया.जीवन अब सहज-सरल नहीं रह गया. उसका सहज प्रवाह समाप्त हो गया है .
मैं आपको एक बात बताता हूँ .हृदय के रोगों के लिए आप कार्डियोलोजिस्ट के पास जाते हैं, मूत्र संबंधी रोगों के लिए नेफ्रोलोजिस्ट के पास जाते हैं. शरीर अपनी समग्रता के साथ कार्य करता है. जबकि दोनों विशेषज्ञ अपने-अपने तरीके से ....अपने-अपने क्षेत्र विशेष में कार्य करते हैं. दोनों ने दिल और गुर्दों को एक दूसरे से अलग करके देखने का प्रयास किया.विज्ञान ने शरीर को खंडित कर दिया न ! तो अब चिकित्सा सम्पूर्ण कैसे हो सकेगी ? आज-कल होलिस्टिक अप्रोच की बात की जा रही है.यह जीवन को उसकी समग्रता के साथ देखने का प्रयास है . जीवन अपने समस्त तत्वों के साथ विचारा जाय .........पूर्ण विज्ञान और पूर्ण कला के साथ .
आज कल तो हमारा जीवन यंत्रवत हो गया है.जीवन का आनंद समाप्त हो गया, जब कला ही नहीं तो आनंद कहाँ से आयेगा ? क्या यह आश्चर्य नहीं कि हम सब आनंद की खोज में ही तो दिन-रात लगे रहते हैं पर आनंद के लिए ही समय नहीं निकाल पाते ! दिन-रात काम-काम ......व्यस्तता ही व्यस्तता. और फिर प्रारम्भ होता है रोगों का सिलसिला. सच तो यह है कि रोगों का नियंत्रण सीधे हमारे ही हाथों में है. कितने लोगों को मालुम है यह ?
आगे के आलेखों में हम जीवन के वैज्ञानिक और कलात्मक सभी पक्षों पर चिंतन करने का प्रयास करेंगे. और प्रयास करेंगे कि जीवन को कैसे निरामय और आनंदमय बनाया जाय. इस चिंतन-यात्रा में सहभागिता के लिए आप भी सादर आमंत्रित हैं. इति शुभम ! .
कारण स्पष्ट है, हमने जीवन की सम्पूर्णता को खंडित कर दिया है. जीवन से विज्ञान को खंड-खंड कर दिया.....और फिर उसकी कलात्मकता को नष्ट कर दिया.जीवन अब सहज-सरल नहीं रह गया. उसका सहज प्रवाह समाप्त हो गया है .
मैं आपको एक बात बताता हूँ .हृदय के रोगों के लिए आप कार्डियोलोजिस्ट के पास जाते हैं, मूत्र संबंधी रोगों के लिए नेफ्रोलोजिस्ट के पास जाते हैं. शरीर अपनी समग्रता के साथ कार्य करता है. जबकि दोनों विशेषज्ञ अपने-अपने तरीके से ....अपने-अपने क्षेत्र विशेष में कार्य करते हैं. दोनों ने दिल और गुर्दों को एक दूसरे से अलग करके देखने का प्रयास किया.विज्ञान ने शरीर को खंडित कर दिया न ! तो अब चिकित्सा सम्पूर्ण कैसे हो सकेगी ? आज-कल होलिस्टिक अप्रोच की बात की जा रही है.यह जीवन को उसकी समग्रता के साथ देखने का प्रयास है . जीवन अपने समस्त तत्वों के साथ विचारा जाय .........पूर्ण विज्ञान और पूर्ण कला के साथ .
आज कल तो हमारा जीवन यंत्रवत हो गया है.जीवन का आनंद समाप्त हो गया, जब कला ही नहीं तो आनंद कहाँ से आयेगा ? क्या यह आश्चर्य नहीं कि हम सब आनंद की खोज में ही तो दिन-रात लगे रहते हैं पर आनंद के लिए ही समय नहीं निकाल पाते ! दिन-रात काम-काम ......व्यस्तता ही व्यस्तता. और फिर प्रारम्भ होता है रोगों का सिलसिला. सच तो यह है कि रोगों का नियंत्रण सीधे हमारे ही हाथों में है. कितने लोगों को मालुम है यह ?
आगे के आलेखों में हम जीवन के वैज्ञानिक और कलात्मक सभी पक्षों पर चिंतन करने का प्रयास करेंगे. और प्रयास करेंगे कि जीवन को कैसे निरामय और आनंदमय बनाया जाय. इस चिंतन-यात्रा में सहभागिता के लिए आप भी सादर आमंत्रित हैं. इति शुभम ! .
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